Munawwar Rana Shayari in Hindi Lyrics
Munawwar Rana Shayari in Hindi Lyrics ( मुनव्वर राना शायरी हिंदी लिरिक्स हिंदी में शायरी ) : He is very famous and Most Successful Shayar and His all Hindi Shayaries are listen in India.
Munawwar Rana Shayari in Hindi Lyrics
मिट्टी में मिला दे कि जुदा हो नहीं सकता
अब इस से ज़यादा मैं तेरा हो नहीं सकता
किसी के ज़ख़्म पर चाहत से पट्टी कौन बाँधेगा
अगर बहनें नहीं होंगी तो राखी कौन बाँधेगा
चलती फिरती आँखों से अज़ाँ देखी है
मैंने जन्नत तो नहीं देखी है माँ देखी है
दावर-ए-हश्र तुझे मेरी इबादत की कसम
ये मेरा नाम-ए-आमाल इज़ाफी होगा
नेकियां गिनने की नौबत ही नहीं आएगी
मैंने जो मां पर लिक्खा है, वही काफी होगा
मेरे हौंसले न तोड़ पाओगे तुम
क्योंकि मेरी शहादत ही अब मेरा धर्म है
सीमा पे डटकर खड़ा हूं, क्योंकि ये मेरा वतन है
हाँ, मैं इस देश का वासी हूँ
इस माटी का कर्ज चुकाऊंगा
जीने का दम रखता हूँ
तो इसके लिए मरकर भी दिखलाऊंगा
मेरे दिल की हालत भी मेरे वतन जैसी है
जिस को दी हुकूमत, उसी ने बर्बाद किया
मिटा दिया उनका वजूद जो भी इनसे भिड़ा है
देश की रक्षा का संकल्प लिए, जो जवान सरहद पर खड़ा है
माँ के आगे यूँ कभी खुल कर नहीं रोना
जहाँ बुनियाद हो इतनी नमी अच्छी नहीं होती
बुज़ुर्गों का मेरे दिल से अभी तक डर नहीं जाता
कि जब तक जागती रहती है माँ मैं घर नहीं जाता
एक आँसू भी हुकूमत के लिए ख़तरा है
तुम ने देखा नहीं आँखों का समुंदर होना
दिया है माँ ने मुझे दूध भी वज़ू करके
महाज़े-जंग से मैं लौट कर न जाऊँगा
मुझे ना तन चाहिए, ना धन चाहिए
बस अमन से भरा यह वतन चाहिए
जब तक जिंदा रहूं, इस मातृ-भूमि के लिए
और जब मरूं तो तिरंगा ही कफन चाहिए
तमाम जिस्म को आँखें बना के राह तको
तमाम खेल मोहब्बत में इंतिज़ार का है
कतरा-कतरा भी दिया वतन के वास्ते
एक बूँद तक ना बचाई इस तन के वास्ते
यूं तो मरते है लाखो लोग रोज
पर मरना वो है दोस्तों जो जान जाये वतन के वास्ते
जब भी देखा मेरे किरदार पे धब्बा कोई
देर तक बैठ के तन्हाई में रोया कोई
वतन की खाक को चंदन समझकर सर पे रखतें है
कब्र में भी खाके वतन कफन पे रखते हैं
अभी ज़िंदा है माँ मेरी मुझे कुछ भी नहीं होगा
मैं घर से जब निकलता हूँ दुआ भी साथ चलती है
अभी ज़िन्दा है माँ मेरी मुझे कु्छ भी नहीं होगा
मैं जब घर से निकलता हूँ दुआ भी साथ चलती है
दुआएँ माँ की पहुँचाने को मीलों मील जाती हैं
कि जब परदेस जाने के लिए बेटा निकलता है
बहन का प्यार माँ की ममता दो चीखती आँखें
यही तोहफ़े थे वो जिनको मैं अक्सर याद करता था
जलते भी गये कहते भी गये आजादी के परवाने
जीना तो उसी का जीना है, जो मरना वतन पर जाने
तुम्हारी आँखों की तौहीन है ज़रा सोचो
तुम्हारा चाहने वाला शराब पीता है
लबों पे उसके कभी बद्दुआ नहीं होती
बस एक माँ है जो मुझसे ख़फ़ा नहीं होती
बरबाद कर दिया हमें परदेस ने मगर
माँ सबसे कह रही है कि बेटा मज़े में है
अब दो ही बात होगी, मुहब्बत से पहले माँ
और माँ से पहले वतन की बात होगी
आन देश की शान देश की, देश की हम संतान हैं
तीन रंगों से रंगा तिरंगा, अपनी ये पहचान हैं
चलो चलते हैं मिलजुल कर वतन पर जान देते हैं
बहुत आसान है कमरे में वंदेमातरम कहना
मेरे ख्याल मे कोई ख्वाब नही बाकी
जिस्म वो ही है मगर अंदाज नही बाकी
आओ छोड़ दो मूझे कुछ पल के लिए तन्हा
के मेरे अंदर अब खूूशबू वो नही बाकी
शहीदों की चिताओं पर लगेंगे हर बरस मेले
वतन पर मरने वालों का बाकी यही निशां होगा
कभी ख़ुशी से ख़ुशी की तरफ़ नहीं देखा
तुम्हारे बाद किसी की तरफ़ नहीं देखा
ये सर-बुलंद होते ही शाने से कट गया
मैं मोहतरम हुआ तो ज़माने से कट गया
उस पेड़ से किसी को शिकायत न थी मगर
ये पेड़ सिर्फ़ बीच में आने से कट गया
वर्ना वही उजाड़ हवेली सी ज़िंदगी
तुम आ गए तो वक़्त ठिकाने से कट गया
हम अपने खून से लिखेंगे कहानी ऐ वतन मेरे
करे कुर्बान हंस कर ये जवानी ऐ वतन मेरे
दिली ख्वाहिश नहीं कोई मगर ये इल्तजा बस है
हमारे हौसले पा जाये मानी ऐ वतन मेरे
जमाने भर में मिलते हैं आशिक कई
मगर वतन से खूबसूरत कोई सनम नहीं होता
नोटों में लिपट कर, सोने में सिमटकर मरे हैं कई
मगर तिरंगे से खूबसूरत कोई कफन नहीं होता
अब तक जिसका खून न खौला हों
वो खून नहीं, वो पानी है
जो देश के काम ना आये
वो बेकार जवानी है
चाहता हूँ कोई नेक काम हो जाए
मेरी हर साँस इस देश के नाम हो जाए
वतन वालो वतन ना बेच देना
ये धरती ये गगन ना बेच देना
शहीदो ने जान दि है वतन के वास्ते
शहीदो के कफन ना बेच देना
आप को चेहरे से भी बीमार होना चाहिए
इश्क़ है तो इश्क़ का इज़हार होना चाहिए
ज़िंदगी तू कब तलक दर-दर फिराएगी हमें
टूटा-फूटा ही सही घर-बार होना चाहिए
मुख़्तसर होते हुए भी ज़िंदगी बढ़ जाएगी
माँ की आँखें चूम लीजे रौशनी बढ़ जाएगी
तुम्हें भी नींद सी आने लगी है थक गए हम भी
चलो हम आज ये क़िस्सा अधूरा छोड़ देते हैं
तेरे एहसास की ईंटें लगी हैं इस इमारत में
हमारा घर तेरे घर से कभी ऊँचा नहीं होगा
ये हिज्र का रस्ता है ढलानें नहीं होतीं
सहरा में चराग़ों की दुकानें नहीं होतीं
मेरे चेहरे पे ममता की फ़रावानी चमकती है
मैं बूढ़ा हो रहा हूँ फिर भी पेशानी चमकती है
मेरी ख़्वाहिश है कि मैं फिर से फ़रिश्ता हो जाऊँ
माँ से इस तरह लिपट जाऊँ कि बच्चा हो जाऊँ
मैंने रोते हुए पोंछे थे किसी दिन आँसू
मुद्दतों माँ ने नहीं धोया दुपट्टा अपना
वो बिछड़ कर भी कहाँ मुझ से जुदा होता है
रेत पर ओस से इक नाम लिखा होता है
मैं भुलाना भी नहीं चाहता इस को लेकिन
मुस्तक़िल ज़ख़्म का रहना भी बुरा होता है
खाने की चीज़ें माँ ने जो भेजी हैं गाँव से
बासी भी हो गई हैं तो लज़्ज़त वही रही
मसर्रतों के ख़ज़ाने ही कम निकलते हैं
किसी भी सीने को खोलो तो ग़म निकलते हैं
सो जाते हैं फ़ुटपाथ पे अख़बार बिछा कर
मज़दूर कभी नींद की गोली नहीं खाते
जब भी कश्ती मेरी सैलाब में आ जाती है
मां दुआ करती हुई ख्वाब में आ जाती है
कभी वतन को महबूब बना के देखो
तुझ पे मरेगा हर कोई
इश्क तो करता है हर कोई
महबूब पे तो मरता है हर कोई
हम कुछ ऐसे तेरे दीदार में खो जाते हैं
जैसे बच्चे भरे बाज़ार में खो जाते हैं
किसी को घर मिला हिस्से में या कोई दुकाँ आई
मैं घर में सब से छोटा था मेरे हिस्से में माँ आई
बरसों से इस मकान में रहते हैं चंद लोग
इक दूसरे के साथ वफ़ा के बग़ैर भी
एक क़िस्से की तरह वो तो मुझे भूल गया
इक कहानी की तरह वो है मगर याद मुझे
इस तरह मेरे गुनाहों को वो धो देती है
माँ बहुत ग़ुस्से में होती है तो रो देती है
मैं इस से पहले कि बिखरूँ इधर उधर हो जाऊँ
मुझे सँभाल ले मुमकिन है दर-ब-दर हो जाऊँ
अब जुदाई के सफ़र को मिरे आसान करो
तुम मुझे ख़्वाब में आ कर न परेशान करो
मैं जला हुआ राख नही, अमर दीप हूँ
जो मिट गया वतन पर, मैं वो शहीद हूँ
लिख रहा हूं मैं अंजाम, जिसका कल आगाज आएगा
मेरे लहू का हर एक कतरा, इंकलाब लाएगा
मैं रहूं या न रहूं पर, ये वादा है मेरा तुझसे
मेरे बाद वतन पर मरने वालों का सैलाब आएगा
अँधेरे और उजाले की कहानी सिर्फ़ इतनी है
जहाँ महबूब रहता है वहीं महताब रहता है
पगली तेरी याद तो बहुत आती है
मगर वतन की मोहब्बत में दम ज्यादा है
कभी वतन के लिए सोच के देख लेना
कभी मां के चरण चूम के देख लेना
कितना मजा आता है मरने में यारों
कभी मुल्क के लिए मर के देख लेना
दिल में तूफां आँखों में दरिया लिए बैठें हैं
ना पूछो हमसे कहानी हमारी
हम अपनी पूरी जिंदगी वतन के नाम किये बैठें हैं
कल अपने-आप को देखा था माँ की आँखों में
ये आईना हमें बूढ़ा नहीं बताता है
आँखों से माँगने लगे पानी वज़ू का हम
काग़ज़ पे जब भी देख लिया माँ लिखा हुआ
हादसों की गर्द से ख़ुद को बचाने के लिए
माँ ! हम अपने साथ बस तेरी दुआ ले जायेंगे
भुला पाना बहुत मुश्किल है सब कुछ याद रहता है
मोहब्बत करने वाला इस लिए बरबाद रहता है
कुछ बिखरी हुई यादों के क़िस्से भी बहुत थे
कुछ उस ने भी बालों को खुला छोड़ दिया था
गर कभी रोना ही पड़ जाए तो इतना रोना
आ के बरसात तिरे सामने तौबा कर ले
ख़ुद को इस भीड़ में तन्हा नहीं होने देंगे
माँ तुझे हम अभी बूढ़ा नहीं होने देंगे
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