Rahat Indori Shayari in Hindi

Rahat Indori Shayari in Hindi

Rahat Indori Shayari in Hindi

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Rahat Indori Shayari in Hindi

पुराने शहरों के मंज़र निकलने लगते हैं
ज़मीन जहां भी खुले घर निकलने लगते हैं
बलंदियों का तसव्वुर भी खूब होता है
कभी-कभी तो मेरे पर निकलने लगते हैं

आग के फूलने​-​फलने का हुनर जानते हैं,
ना बुझा हमको के जलने का हुनर जानते हैं।
हर नए रंग में ढलने का हुनर जानते हैं,
लोग मौसम में बदलने का हुनर जानते हैं।

तेरी आंखों की हद से बढ़कर हूं,
दश्त मैं आग का समंदर हूं।
कोई तो मेरी बात समझेगा,
एक कतरा हूं और समंदर हूं।

रोज़ तारों को नुमाइश में ख़लल पड़ता है
चाँद पागल है अँधेरे में निकल पड़ता है

शाख़ों से टूट जाएँ वो पत्ते नहीं हैं हम
आँधी से कोई कह दे कि औक़ात में रहे
सूरज सितारे चाँद मिरे सात में रहे
जब तक तुम्हारे हात मिरे हात में रहे

ये हवाएँ उड़ न जाएँ ले के काग़ज़ का बदन
दोस्तो मुझ पर कोई पत्थर ज़रा भारी रखो
ये ज़रूरी है कि आँखों का भरम क़ाएम रहे
नींद रक्खो या न रक्खो ख़्वाब मेयारी रखो

अब हम मकान में ताला लगाने वाले हैं,
पता चला हैं की मेहमान आने वाले हैं||

बोतलें खोल कर तो पी बरसों
आज दिल खोल कर भी पी जाए

किसने दस्तक दी ये दिल पर
कौन है आप तो अंदर है, ये बाहर कौन है.

यहां दरिया पे पाबंदी नहीं है,
मगर पहरे लबों पे लग रहे हैं.
कभी दिमाग, कभी दिल, कभी नजर में रहो
ये सब तुम्हारे घर हैं, किसी भी घर में रहो

अफवाह थी की मेरी तबियत ख़राब हैं
लोगो ने पूछ पूछ के बीमार कर दिया,

अंदर का ज़हर चूम लिया धुल के आ गए
कितने शरीफ़ लोग थे सब खुल के आ गए

अंदर का ज़हर चूम लिया धुल के आ गए
कितने शरीफ़ लोग थे सब खुल के आ गए

उस आदमी को बस इक धुन सवार रहती है
बहुत हसीन है दुनिया इसे ख़राब करूं

अब ना मैं हूँ, ना बाकी हैं ज़माने मेरे​,
फिर भी मशहूर हैं शहरों में फ़साने मेरे​,
ज़िन्दगी है तो नए ज़ख्म भी लग जाएंगे​,
अब भी बाकी हैं कई दोस्त पुराने मेरे।

चेहरों के लिए आईने कुर्बान किये हैं,
इस शौक में अपने बड़े नुकसान किये हैं,​
महफ़िल में मुझे गालियाँ देकर है बहुत खुश​,
जिस शख्स पर मैंने बड़े एहसान किये है।

तेरी हर बात ​मोहब्बत में गँवारा करके​,
दिल के बाज़ार में बैठे हैं खसारा करके​,
मैं वो दरिया हूँ कि हर बूंद भंवर है जिसकी​,​​
तुमने अच्छा ही किया मुझसे किनारा करके।

आते जाते हैं कई रंग मेरे चेहरे पर,
लोग लेते हैं मजा ज़िक्र तुम्हारा कर के।

जंग है तो जंग का मंज़र भी होना चाहिए
सिर्फ नेज़े हाथ में हैं सर भी होना चाहिए

मोम के पास कभी आग को ला कर देखूं
सोंचता हूं कि तुझे हाथ लगा कर देखूं
मैने दोखा है ज़माने को शराबें पीकर
दम निकल जाए अगर होश में आकर देखूं

नींद से मेरा ताल्लुक़ ही नहीं बरसों से
ख़्वाब आ आ के मेरी छत पे टहलते क्यूं हैं
एक चिंगारी नज़र आई थी बस्ती में उसे
वो अलग हट गया आँधी को इशारा कर के

इन रातों से अपना रिश्ता जाने कैसा रिश्ता है
नींदें कमरों में जागी हैं ख़्वाब छतों पर बिखरे हैं

हाथ ख़ाली हैं तेरे शहर से जाते जाते,
जान होती तो मेरी जान लुटाते जाते,
अब तो हर हाथ का पत्थर हमें पहचानता है,
उम्र गुज़री है तेरे शहर में आते जाते।

दोस्ती जब किसी से की जाए
दुश्मनों की भी राय ली जाए

न हम-सफ़र न किसी हम-नशीं से निकलेगा
मारे पाँव का काँटा हमीं से निकलेगा

आँख में पानी रखो होंटों पे चिंगारी रखो
ज़िंदा रहना है तो तरकीबें बहुत सारी रखो

फूलों की दुकानें खोलो, खुशबू का व्यापार करो
इश्क़ खता है तो, ये खता एक बार नहीं, सौ बार करो

लू भी चलती थी तो बादे-शबा कहते थे,
पांव फैलाये अंधेरो को दिया कहते थे,
उनका अंजाम तुझे याद नही है शायद,
और भी लोग थे जो खुद को खुदा कहते थे।

मैं आखिर कौन सा मौसम तुम्हारे नाम कर देता
यहां हर एक मौसम को गुज़र जाने की जल्दी है

तूफ़ानों से आँख मिलाओ, सैलाबों पर वार करो
मल्लाहों का चक्कर छोड़ो, तैर के दरिया पार करो

जुबां तो खोल, नजर तो मिला, जवाब तो दे
मैं कितनी बार लुटा हूँ, हिसाब तो दे

बीमार को मरज़ की दवा देनी चाहिए
मैं पीना चाहता हूँ पिला देनी चाहिए

मुझसे पहले वो किसी और की थी, मगर कुछ शायराना चाहिये था,
चलो माना ये छोटी बात है, पर तुम्हें सब कुछ बताना चाहिये था|

बहुत गुरूर है दरिया को अपने होने पर,
जो मेरी प्यास से उलझे तो धज्जियाँ उड़ जाएँ।

कहीं अकेले में मिल कर झिंझोड़ दूँगा उसे
जहाँ जहाँ से वो टूटा है जोड़ दूँगा उसे

फूंक डालुंगा मैं किसी रोज दिल की दुनिया
ये तेरा खत तो नहीं है जो जला ना सकूं

शहर क्या देखें कि हर मंज़र में जाले पड़ गए
ऐसी गर्मी है कि पीले फूल काले पड़ गए

रोज़ पत्थर की हिमायत में ग़ज़ल लिखते हैं
रोज़ शीशों से कोई काम निकल पड़ता है

नए किरदार आते जा रहे हैं
मगर नाटक पुराना चल रहा है

मेरी आंखों में कैद थी बारिश,
तुम ना आए तो हो गई बारिश।
आसमानों में ठहर गया सूरज,
नदियों में ठहर गई बारिश।

सरहदों पर बहोत तनाव है क्या
कुछ पता तो करो चुनाव है क्या

मैंने अपनी खुश्क आँखों से लहू छलका दिया,
इक समंदर कह रहा था मुझको पानी चाहिए।


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